1.1 भूमिका/परिभाषा
किसी भौतिक राशि का मापन, एक निश्चित, आधरभूत, रूप से चुने गए मान्यताप्राप्त, संदर्भ-मानक से इस राशि की तुलना करना, यह संदर्भ-मानक मात्रक कहलाता है। किसी भी भौतिक राशि की माप को मात्रा के आगे एक संख्या लिखकर व्यक्त करते है। यद्यपि हमारे द्वारा मापी जाने वाली भौतिक राशियों की संख्या बहुत ही अधिक है, फिर भी, हम इन सब भौतिक राशियों को व्यक्त करने के लिए, मात्राकों की सीमित संख्या की ही आवश्यकता होती है, क्योंकि ये राशियाँ एक दूसरे से परस्पर संबंधित होती है। विभिन्न भौतिक राषियों के मापन में कुछ ऐसी भौतिक राषियाँ होती है, जो एक दूसरे से स्वतन्त्र होती है और इनकी मद्द से हम अन्य राषियों को व्यक्त कर सकते हैं। मूल राशियों को व्यक्त करने के लिए प्रयुक्त मात्रकों को मूल मात्रक कहते हैं। इनके अतिरिक्त अन्य सभी भौतिक राशियों के मात्राकों को मूल मात्राकों के संयोजन द्वारा ज्ञात किया जाता है। इस प्रकार प्राप्त किए गए व्युत्पन्न राशियों के मात्रकों को व्युत्पन्न मात्रक कहते हैं। मूल मात्रकों और व्युत्पन्न मात्रकों के सम्पूर्ण समुच्चय को मात्रकों की प्रणाली कहते है।
1.2 मात्रकों की अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली
कई वर्षों समय पहले मापन के लिए, विभिन्न देशों के वैज्ञानिक, अलग-अलग मापन प्रणालियों का उपयोग करते थे। अब से कुछ समय पहले तक ऐसी तीन प्रणालियाँ C.G.S. प्रणाली, F.P.S. या ब्रिटिश प्रणाली एवं M.K.S. प्रणाली, प्रमुखता से प्रयोग में लाई जाती थीं। इन प्रणालियों में लम्बाई, द्रव्यमान एवं समय के मूल मात्रक क्रमशः इस प्रकार हैं :
C.G.S. प्रणाली में, सेन्टीमीटर, ग्राम एवं सेकन्ड।
F.P.S. प्रणाली में, फुट, पाउन्ड एवं सेकन्ड।
M.K.S. प्रणाली में, मीटर, किलोग्राम एवं सेकन्ड।
आजकल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य प्रणाली ‘‘सिस्टम इन्टरनेशनल डि यूनिट्स‘‘ है (जिसे फ्रेंच भाषा में ‘‘मात्रकों की अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली‘‘ कहते है)। इसे संकेत में SI लिखा जाता है। SI प्रतीकों, मात्राकों और उनके संकेताक्षरों की योजना 1971 में, मापतोल के महा सम्मेलन द्वारा विकसित कर, वैज्ञानिक, तकनीकी, औद्योगिक एवं व्यापारिक कार्यों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उपयोग हेतु अनुमोदित की गई।
मूल मात्रक
SI प्रणाली में प्रयुक्त मूल मात्रक
कई वर्षों समय पहले मापन के लिए, विभिन्न देशों के वैज्ञानिक, अलग-अलग मापन प्रणालियों का उपयोग करते थे। अब से कुछ समय पहले तक ऐसी तीन प्रणालियाँ C.G.S. प्रणाली, F.P.S. या ब्रिटिश प्रणाली एवं M.K.S. प्रणाली, प्रमुखता से प्रयोग में लाई जाती थीं। इन प्रणालियों में लम्बाई, द्रव्यमान एवं समय के मूल मात्रक क्रमशः इस प्रकार हैं :
C.G.S. प्रणाली में, सेन्टीमीटर, ग्राम एवं सेकन्ड।
F.P.S. प्रणाली में, फुट, पाउन्ड एवं सेकन्ड।
M.K.S. प्रणाली में, मीटर, किलोग्राम एवं सेकन्ड।
आजकल अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्य प्रणाली ‘‘सिस्टम इन्टरनेशनल डि यूनिट्स‘‘ है (जिसे फ्रेंच भाषा में ‘‘मात्रकों की अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली‘‘ कहते है)। इसे संकेत में SI लिखा जाता है। SI प्रतीकों, मात्राकों और उनके संकेताक्षरों की योजना 1971 में, मापतोल के महा सम्मेलन द्वारा विकसित कर, वैज्ञानिक, तकनीकी, औद्योगिक एवं व्यापारिक कार्यों में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उपयोग हेतु अनुमोदित की गई।
मूल मात्रक
मूल मात्रक वे मात्रक हैं, जो अन्य मात्रकों से स्वतंत्र होते हैं, अर्थात् उनको एक–दूसरे से अथवा आपस में बदला नहीं जा सकता है। उदाहरण के लिए लम्बाई, द्रव्यमान और समय के लिए क्रमश: मीटर, किलोग्राम और सेकेण्ड का प्रयोग किया जाता है। मूल मात्रक की संख्या सात होती है
व्युत्पन्न मात्रक
एक अथवा एक से अधिक मूल मात्रक पर उपयुक्त घातें लगाकर प्राप्त किए गए मात्रक को व्युत्पन्न मात्रक कहते हैं, अर्थात् व्युत्पन्न मात्रक मूल मात्रकों पर निर्भर करते हैं। कुछ व्युत्पन्न मात्रक निम्नलिखित हैं:-
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